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"जहां सांस लेना मुहाल है/ सर्वत एम जमाल" के अवतरणों में अंतर

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तुझे बाँट डालेगा देखना
 
तुझे बाँट डालेगा देखना
तेरे आइने में जो बाल है'''''झूकी मूल''</poem>
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तेरे आइने में जो बाल है'''</poem>

20:42, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण

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जहां सांस लेना मुहाल है
वहाँ लोग खुश हैं, कमाल है

यहीं चाँद रात का हुस्न था
जो सहर हुई तो निढाल है

कोई भेड़ है कोई भेड़िया
कहीं आदमी की मिसाल है

 गए वक्त कितना बुलंद था
मगर आज सच पे जवाल है

ये उजाले अब भी हैं शहर में
यही तीरगी को मलाल है

तुझे बाँट डालेगा देखना
तेरे आइने में जो बाल है