भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़रा-सा मुस्कराये मुड़ गये इन्कार अच्छा है / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़रा-सा मुस्कराये मुड़ गये इन्कार अच्छा है
जमाना कुछ कहे, पर आपका क़िरदार अच्छा है।

कभी करता परीशॉ घर, कभी हैराँ करे दफ़्तर
चलो अब दोस्तों के घर चलें इतवार अच्छा है।

ज़रा-सा भी नहीं धेाखा, ज़रा-सा भी नहीं नुक्शाँ
 तेरा गुस्सा किसी के प्यार से सौ बार अच्छा है।

नज़ाकत ही नहीं काफी, अदायें भी ज़रूरी हैं
तेरा जलवा दिखाने का ये कारोबार अच्छा है।

तेरी उल्फ़त रहे ज़िन्दा मेरी जाँ भी चली जाये
तो घाटे का नहीं सौदा अगर दिलदार अच्छा है।