भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ज़िन्दगी है तो कुछ सुकूँ भी हो, और कुछ इज़्तिराब भी होवे / रवि सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवि सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
दश्त<ref>रेगिस्तान (Desert)</ref> में सख़्त-जाँ मुसाफ़िर हो, चश्म<ref>आँख (Eye)</ref> होवे सराब<ref>मृग-मरीचिका (Mirage)</ref> भी होवे
 
दश्त<ref>रेगिस्तान (Desert)</ref> में सख़्त-जाँ मुसाफ़िर हो, चश्म<ref>आँख (Eye)</ref> होवे सराब<ref>मृग-मरीचिका (Mirage)</ref> भी होवे
  
यूँ तो दुनिया का खेल बाहर है, इक तमाशा है मेरे अंदर भी 
+
यूँ तो दुनिया का खेल बाहर है, इक तमाशा है मेरे अन्दर भी 
 
जिसमें दोनों जहाँ के क़िस्से हों, एक ऐसी किताब भी होवे
 
जिसमें दोनों जहाँ के क़िस्से हों, एक ऐसी किताब भी होवे
  
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
उनकी ज़िद है कि इसमें रौज़न<ref>खिड़की (window)</ref> हो, औ’ निकलने को बाब<ref>दरवाज़ा (door, gate)</ref> भी होवे
 
उनकी ज़िद है कि इसमें रौज़न<ref>खिड़की (window)</ref> हो, औ’ निकलने को बाब<ref>दरवाज़ा (door, gate)</ref> भी होवे
  
ख़ुल्द<ref>स्वर्ग (Heaven)</ref>-ओ-ख़ल्क़<ref>सृष्टि, अवाम (Universe, People)</ref> के क़ानून अलग, वज्ह इसकी भी तलाशी जाये 
+
ख़ुल्द<ref>स्वर्ग (Heaven)</ref>-ओ-ख़ल्क़<ref>सृष्टि, अवाम (Universe, People)</ref> के क़ानून अलग, वज्ह इसकी भी तलाशी जाए 
 
वो जो सबका हिसाब करते हैं, आज उनका हिसाब भी होवे 
 
वो जो सबका हिसाब करते हैं, आज उनका हिसाब भी होवे 
  

20:24, 20 जून 2019 के समय का अवतरण

ज़िन्दगी है तो कुछ सुकूँ भी हो, और कुछ इज़्तिराब<ref>बेचैनी (restlessness)</ref> भी होवे 
बारहा<ref>अक्सर (often)</ref> हो सवाल आसां भी, बारहा लाजवाब भी होवे 

माहो<ref>चाँद (Moon)</ref> -ख़ुर्शीदो<ref>सूरज (Sun)</ref>-कहकशाँ<ref>आकाशगंगा (Milky Way)</ref> ये ख़ला<ref>अन्तरिक्ष (Space)</ref>, ग़र्दिशे-आसमाँ में मानीं क्या  
दश्त<ref>रेगिस्तान (Desert)</ref> में सख़्त-जाँ मुसाफ़िर हो, चश्म<ref>आँख (Eye)</ref> होवे सराब<ref>मृग-मरीचिका (Mirage)</ref> भी होवे

यूँ तो दुनिया का खेल बाहर है, इक तमाशा है मेरे अन्दर भी 
जिसमें दोनों जहाँ के क़िस्से हों, एक ऐसी किताब भी होवे

आप को कायनात चुननी थी, मुझको चुनना था इक गुले-नग़्मा
अब हक़ीक़त के लबों पे मेरा नग़्मा-ए-इन्तिख़ाब<ref>चुना हुआ गीत (selected song)</ref> भी होवे
   
आलमे-ग़म को रोक रक्खा है ये जो दीवार गिर्दे-बाग़े-बहिश्त<ref>स्वर्ग के चारों ओर (around the heaven)</ref>  
उनकी ज़िद है कि इसमें रौज़न<ref>खिड़की (window)</ref> हो, औ’ निकलने को बाब<ref>दरवाज़ा (door, gate)</ref> भी होवे

ख़ुल्द<ref>स्वर्ग (Heaven)</ref>-ओ-ख़ल्क़<ref>सृष्टि, अवाम (Universe, People)</ref> के क़ानून अलग, वज्ह इसकी भी तलाशी जाए 
वो जो सबका हिसाब करते हैं, आज उनका हिसाब भी होवे 

अपनी हस्ती की तवालत<ref>दीर्घता (of long duration)</ref> पे गुमां, गरचे उजड़े नहीं बने भी कहाँ 
रख्ते-तारीख़<ref>इतिहास के साज़ो-सामान (materials of history)</ref> में यहाँ के लिए शाइस्ता<ref>सभ्य (cultured)</ref> इन्क़लाब भी होवे
 
देख दौलत की कामरानी<ref>सफलता (success)</ref> को, इस तरक़्क़ी की तबाही को न देख
जश्ने-जम्हूरियत में मुमकिन है ज़िक्रे-ख़ाना-ख़राब<ref>बर्बाद लोगों का उल्लेख (mention of those who have been destroyed)</ref> भी होवे 

एक ख़ामोश उम्र गुज़री है, अब बुढ़ापे में शेर कहते हैं 
उस पे ख़्वाहिश कि तालियाँ भी बजें, और सर पे ख़िताब भी होवे 

शब्दार्थ
<references/>