भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ुल्मत-ए-शाम से भी नूर-ए-सहर पैदा कर / 'फना' निज़ामी कानपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:01, 26 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='फना' निज़ामी कानपुरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ुल्मत-ए-शाम से भी नूर-ए-सहर पैदा कर
क़ल्ब शबनम का सितारों की नज़र पैदा कर

फिर किसी दामन-ए-रंगीं की तरफ़ आँख उठा
पहले अश्कों के लिए दीद-ए-तर पैदा कर

रह-ए-दुश्वार में कर मंज़िल-ए-आसमाँ की तलाश
उसी दीवार में हिम्मत है तो दर पैदा कर

मौसम-ए-गुल में तो आ जाती है काँटों पे बहार
बात तो जब है ख़िजाँ में गुल-ए-तर पैदा कर

सहन-ए-गुलशन न सही दश्त का आग़ोश सही
वहशत-ए-दिल के लिए कोई तो घर पैदा कर

बख़्श दे मुर्दा-ए-दिल को ग़म-ए-बे-दाद ‘फ़ना’
सीन-ए-संग में तूफ़ान-ए-शरर पैदा कर