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"जाओ बादल / ज्ञान प्रकाश आकुल" के अवतरणों में अंतर

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जितने लोग पढ़ेंगे
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जाओ बादल,
पढ़कर,
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तुम्हें मरुस्थल बुला रहा है।
जितनी बार नयन रोयेंगे
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समझो उतनी बार,
+
गीत को
+
लिखने वाला रोया होगा।
+
  
सदियों की अनुभूत उदासी यूँ ही नहीं कथ्य में आयी
+
वेणुवनों की वल्लरियाँ अब
आँसू आँसू हुआ इकट्ठा मन में एक नदी लहरायी
+
पुष्पित होना चाह रहीं हैं,
इस नदिया में घुलकर
+
थकी स्पृहायें शीतलता में
जितने लोग
+
जी भर सोना चाह रहीं हैं।
प्यास अपनी खोयेंगे,
+
स्वप्न तुम्हारा
सब के हिस्से का वह मरुथल
+
कब से झूला झुला रहा है।
गीतकार ने ढोया होगा।
+
  
मंत्रों जैसे गीत मिलेंगे मंत्रमुग्ध से सुनने वाले
+
उसके ऊपर निष्प्रभाव है
सुनकर लोगों ने सहलाए अपने अपने दिल के छाले
+
दुनिया भर का जादू टोना,
जितनी रातें जाग जागकर
+
जिसने भी चाहा जीवन में
लोग नए सपने बोयेंगे,
+
मरुथल जाकर बादल होना।
उतनी रातें गीत अकेला
+
द्वार सफलता
झूठ मूठ ही सोया होगा।
+
का उसके हित खुला रहा है।
  
आँसू से ही बने हुए हम मुस्कानों के कारोबारी
+
फिर भी मेरी एक विनय है
दुनिया को जी भर देखा पर सीख न पाए दुनियादारी
+
अतिवादी होने से बचना,
गाछ कि जिसके नीचे
+
सम्यक् वृष्टि चाहिए इस को
आने वाले बंजारे सोएंगे
+
जटिल धरा की है संरचना ।
समझो किसी गीत ने उसको
+
उसे जगाना
अश्रु मिलाकर बोया होगा।
+
ताप जिसे भी सुला रहा है।
 
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22:25, 1 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण

जाओ बादल,
तुम्हें मरुस्थल बुला रहा है।

वेणुवनों की वल्लरियाँ अब
पुष्पित होना चाह रहीं हैं,
थकी स्पृहायें शीतलता में
जी भर सोना चाह रहीं हैं।
स्वप्न तुम्हारा
कब से झूला झुला रहा है।

उसके ऊपर निष्प्रभाव है
दुनिया भर का जादू टोना,
जिसने भी चाहा जीवन में
मरुथल जाकर बादल होना।
द्वार सफलता
का उसके हित खुला रहा है।

फिर भी मेरी एक विनय है
अतिवादी होने से बचना,
सम्यक् वृष्टि चाहिए इस को
जटिल धरा की है संरचना ।
उसे जगाना
ताप जिसे भी सुला रहा है।