भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागो वशी वारे ललना-जागो मोरे प्यारे / बुन्देली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जागो वंशी वारे ललना-जागो मोरे प्यारे
रजनी बीती भोर भयो है,
घर-घर खुले किवाड़े। जागो...
गोपी दही मथत सुनियत है,
कंगना के झनकारे। जागो...
उठो लाल जी भोर भयो है,
सुर नर ठांड़े द्वारे। जागो...
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल
जय-जय शब्द उचारे।
माखन रोटी हाथ में लीन्हीं,
गउवन के रखवारे। जागो...
मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर
शरण मैं आई तिहारे। जागो...