भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाग उठी चुभन / भावना कुँअर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{KKGlobal}}
+
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार= भावना कुँअर  
 
|रचनाकार= भावना कुँअर  

03:12, 27 अगस्त 2018 के समय का अवतरण

1
काँटों पे चले
उफ़ तक भी न की
ऐसे जिए थे हम,
सैलाब आया
सब बहा ले गया
उखड़े थे कदम।
2
चुभते रिश्ते
पल-पल मुझसे
कुछ माँगते रहे,
चुकाया सब
कीमत दे साँसों की
फिर भी रहा बाकी।
3
लगी जो काई
रिश्तों पर हमारे
अब हटेगी कैसे ?
रूठ के बैठी
खुशियों की किरण
अब मनाएँ कैसे?