भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाग देस अब जाग / निर्मल कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल कुमार शर्मा |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धोरां धरती आज पुकारे
जाग देस अब जाग
मायड़ थने जगावे अब थूं
खुद लिख खुद रो भाग
जाग देस अब जाग !

बिरखा जळ है इमरत, इण ने
कर भेलो सब पान करो
ताल-बावड्याँ सदा भरी रहे
इण मुजब कीं काम करो
किम्मत पाणी री जिण जाणी
उण जाणी जीवण री राग
जाग देस अब जाग !

हरी चूंदड़ी ओढ़ रहूँ, या
कद स्यूं म्हारे मन में है
छैल-छबीला बून्टा ज्यूँ
दरखत जिण रे माथे सोहे
बाग़-बगीचा गोत हो लागी
अस्यी है लागी म्हा में लाग
जाग देस अब जाग !

क्यूँ जोवे दूजे हाथां में
थूं तकदीर आपणी रे
खुद रे हाथां राख भरोसो
फिर दुनिया या थारी है
सब मिल जासी, जद जग जासी
मनडे कीं पावण री आस
जाग देस अब जाग !

म्हारा हांचळ अजे नीं सूख्या
क्यूँ बिटकणीयाँ चूस रह्या
किण मद में हो थें डूब्या
क्यूँ मायड़ सूँ रूस रह्या
माँ री कदर ना जाणी, उण रे
माथे निरमल चढ़े ना पाग
 जाग देस अब जाग !