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जाते-जाते ये तो बतलाएँ किसे आवाज़ दें / कांतिमोहन 'सोज़'

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जाते-जाते ये तो बतलाएँ किसे आवाज़ दें ।
किसको दिल के ज़ख़्म दिखलाएँ किसे आवाज़ दें ।।

मेरे इन वीरान ख़्वाबों में तो आ सकते हो तुम
हो रहेंगी और भी बातें किसे आवाज़ दें ।

अब तो अपनी भी सदा यां लौटकर आती नहीं
किस क़दर वीरान हैं रातें किसे आवाज़ दें ।

लोग होते हैं तो वीराना भी बन जाता है घर
वरना घुस आती हैं बरसातें किसे आवाज़ दें ।

घिर रही है शाम धुन्दलाने लगे सारे निशां
सोज़ किससे पूछने जाएँ किसे आवाज़ दें ।।

25-9-2015