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Kavita Kosh से
अपने दुश्मन पे मगर पूरी नज़र रखता हूं
हर किसी को तो अपना दिल मैं नहीं दे सकता
दिल जो कहता है सही सिर्फ़ वही करता हूं
सामने फूल गर तो सर पे हथौड़ा भी है
पत्थरों , सुन लो हक़ीक़त बयान करता हूं
उनके होंठों की हंसी पर तो फ़िदा हूं मैं भी
उनकी आंखों में छुपे राज़ मगर पढ़ता हूं
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