भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाम टकराओ ! वक़्त नाज़ुक है / साग़र सिद्दीकी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 8 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साग़र सिद्दीकी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाम टकराओ ! वक़्त नाज़ुक है
रंग छलकाओ ! वक़्त नाज़ुक है

हसरतों की हसीन क़ब्रों पर
फूल बरसाओ ! वक़्त नाज़ुक है

इक फ़रेब और ज़िन्दगी के लिए
हाथ फैलाओ ! वक़्त नाज़ुक है

रंग उड़ने लगा है फूलों का
अब तो आ जाओ ! वक़्त नाज़ुक है

तिश्नगी तिश्नगी ! अरे तौबा
ज़ुल्फ़ लहराओ ! वक़्त नाज़ुक है

बज़्म-ए-'साग़र' है गोश-बर-आवाज़
कुछ तो फ़रमाओ ! वक़्त नाज़ुक है