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"जिसे भाई समझता था वही मुझको दगा देगा / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैं बिल्कुल बेख़बर था, क्या वह ऐसा भी है कर सकता | ||
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+ | हज़ारों साल के रिश्ते को मिट्टी में मिला देगा | ||
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+ | वही इन्सान क्या इतना बड़ा कमज़र्फ़ निकलेगा | ||
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+ | हज़ारों बार जिसने लड़ के तूफां से बचाया हो | ||
+ | मुहब्बत का दिया क्या अपने दामन से बुझा देगा | ||
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+ | किसी को भी न आइंदा किसी पर भी यकीं होगा | ||
+ | कोई माहौल दहशत का अगर ऐसा बना देगा | ||
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+ | परीशां हूँ , बहुत हैरां हूँ, उलझा हूँ सवालों में | ||
+ | अंधेरा कब छंटेगा, ख़ौफ़ का मंज़र ये बदलेगा | ||
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15:25, 15 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण
जिसे भाई समझता था वही मुझको दगा देगा
नहीं सोचा था गरदन पर मेरी छूरा चला देगा
मैं बिल्कुल बेख़बर था, क्या वह ऐसा भी है कर सकता
भरोसे को हमारे इस तरस ज़िंदा जला देगा
कभी बातों से उसकी इस तरह की बू नहीं आयी
हज़ारों साल के रिश्ते को मिट्टी में मिला देगा
खुदा के सामने देता था ईमां की दुहाई जो
वही इन्सान क्या इतना बड़ा कमज़र्फ़ निकलेगा
हज़ारों बार जिसने लड़ के तूफां से बचाया हो
मुहब्बत का दिया क्या अपने दामन से बुझा देगा
किसी को भी न आइंदा किसी पर भी यकीं होगा
कोई माहौल दहशत का अगर ऐसा बना देगा
परीशां हूँ , बहुत हैरां हूँ, उलझा हूँ सवालों में
अंधेरा कब छंटेगा, ख़ौफ़ का मंज़र ये बदलेगा