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"जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
 
जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
झील सागर ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।
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झील, सागर, ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।
  
 
ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,
 
ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,

17:08, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

जिस घड़ी बाज़ू मेरे चप्पू नज़र आने लगे।
झील, सागर, ताल सब चुल्लू नज़र आने लगे।

ज़िंदगी के बोझ से हम झुक गये थे क्या ज़रा,
लाट साहब को निरे टट्टू नज़र आने लगे।

हर पुलिस वाला अहिंसक हो गया अब देश में,
पाँच सौ के नोट पे बापू नज़र आने लगे।

कल तलक तो ये नदी थी आज ऐसा क्या हुआ,
स्वर्ग जाने को यहाँ तंबू नज़र आने लगे।

भूख इतनी भी न बढ़ने दीजिए मेरे हुज़ूर,
सोन मछली आपको रोहू नज़र आने लगे।