भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने की दवा करते हैं / सुशील साहिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप जिनके लिए जीने की दवा करते हैं
वो तो बस आपके मरने की दुआ करते हैं

जब कोई नाम पता ही नहीं मालूम उन्हें
तो भला रोज़ वह ख़त किसको लिखा करते हैं

काश इक बार भी मिल जाए हक़ीक़त में हमें
जिस तरह रोज़ वह ख़्वाबों में मिला करते हैं

बावफा पहले की मानिंद रहे हम भी नहीं
आप भी थोड़ा बहुत हमसे दग़ा करते हैं

दिल की सड़कों पर तो रफ़्तार को क़ाबू कीजे
 हादसे शामो-सहर रोज़ हुआ करते हैं

प्यार, खाँसी औ ख़ुशी छुप नहीं सकता 'साहिल'
हम नहीं कहते हैं ये, लोग कहा करते हैं