भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जीवन की चंचल सरिता में / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन …)
 
छो ("जीवन की चंचल सरिता में / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(कोई अंतर नहीं)

11:54, 13 मई 2010 के समय का अवतरण

जीवन की चंचल सरिता में
फेंकी मैंने मन की जाली,
फँस गईं मनोहर भावों की
मछलियाँ सुघर, भोली-भाली।

मोहित हो, कुसुमित-पुलिनों से
मैंने ललचा चितवन डाली,
बहु रूप, रंग, रेखाओं की
अभिलाषाएँ देखी-भालीं।

मैंने कुछ सुखमय इच्छाएँ
चुन लीं सुन्दर, शोभाशाली,
औ’ उनके सोने-चाँदी से
भर ली प्रिय प्राणों की डाली।

सुनता हूँ, इस निस्तल-जल में
रहती मछली मोतीवाली,
पर मुझे डूबने का भय है
भाती तट की चल-जल-माली।

आएगी मेरे पुलिनों पर
वह मोती की मछली सुन्दर,
मैं लहरों के तट पर बैठा
देखूँगा उसकी छबि जी भर।

रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२