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{{KKGlobal}}मेरे आँगन{{KKRachnaउतरी सोनपरी|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'लिये हाथ में}}वह कनकछरी{{KKCatKavita}}अर्धमुद्रित<poem>उसकी हैं पलकेंजीवन के अँधेरों मेंअधरों परबाधा बने घेरों मेंमधुघट छलकेसभी द्वारे दीपक जलाए रखना ।कोमल पगहैं जादू-भरे डगमुदित मनहो उठा सारा खुशियाँ ही जगको मिलेंनत काँधों पेमुस्कान के फूल खिलेंबिखरी हैं अलकेंथोड़ी-सी रौशनी बचाए रखना ।वो आई तोआँगन भी चहकाखुशबू फैलीइन नयनों की झील मेंझिलमिल हर कोना महकाकन्दील मेंदेखे दुनियाप्यार के कुछ दीये , सजाए रखना ।बाजी थी पैंजनियाँवही धरा का रोग हैं, ठुमक चलीज्यों नदिया में तरीजो स्वार्थ-भरे लोग हैंसबकी सोनपरी तनिक दूरी उनसे ,बनाए रखना
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