भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन छलना है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:05, 24 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर पटका
जडीभूत थी शिला
न वह टूटी
न ही कभी पिंघली
मस्तक फूटा
प्रयास खेत रहे
अभिमन्यु -से
जीवन छलना है
अँधेरे रास्ते
अन्धों के संग -संग
होकर मौन
पीछे ही चलना है
हिम- सा गलना है।