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जीव बटाऊ रे बहता मारग माई / दरिया साहब

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जीव बटाऊ रे बहता मारग माईं।
आठ पहरका चालना, घड़ी इक ठहरै नाईं॥
गरभ जनम बालक भयो रे, तरुनाई गरबान।
बृद्ध मृतक फिर गर्भबसेरा, यह मारग परमान व
पाप-पुन्य सुख-दुःखकी करनी, बेड़ी थारे लागी पाँय।
पञ्च ठगोंके बसमें पड़ो रे, कब घर पहुँचै जाय॥
चौरासी बासो तू बस्यो रे, अपना कर-कर जान।
निस्चय निस्चल होयगो रे, तूँ पद पहुँचै निर्बान॥
राम बिना तोको ठौर नहीं रे, जहँ जावै तहँ काल।
जन दरिया मन उलट जगतसूँ, अपना राम सँभाल॥