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"जी से हटती ही नहीं याद किसी की गुमनाम / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की  / गुलाब खंडेलवाल
 
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जी से हटती ही नहीं याद किसीकी गुमनाम
 
जैसे बीमार के आँगन में बरसती हुई शाम
 
 
तू जो परदा न हटाये तो ये किसका है क़सूर!
 
हमने यह रात लिखा दी है तेरे प्यार के नाम
 
 
फिर से बिछुड़े हुए राही जहाँ मिल जायँ कभी 
 
दूर इस राह में ऐसा भी कोई होगा मुकाम
 
 
उनसे कहने की तो बातें थी हज़ारों ही, मगर
 
मुँह भी हम खोल न पाए कि हुई उम्र तमाम
 
 
हमने माना बड़ी नाज़ुक है क़लम तेरी गुलाब!
 
पंखड़ी भी कभी कर देती है तलवार का काम
 
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01:55, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण