भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना
 
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना
  
मुसाफिर राह में यों तो हज़ारों साथ चलते हैं
+
मुसाफ़िर राह में यों तो हज़ारों साथ चलते हैं
 
कोई जब दिल को छू जाए, हमें भी याद कर लेना
 
कोई जब दिल को छू जाए, हमें भी याद कर लेना
  
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
हमींने तीर चलवाए, हमें भी याद कर लेना
 
हमींने तीर चलवाए, हमें भी याद कर लेना
  
कभी आँखों ही आँखों बात कुछ हमसे भी होती थी
+
कभी आँखों-ही-आँखों बात कुछ हमसे भी होती थी
 
कभी हम भी तुम्हें भाये, हमें भी याद कर लेना
 
कभी हम भी तुम्हें भाये, हमें भी याद कर लेना
  

01:56, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना

मुसाफ़िर राह में यों तो हज़ारों साथ चलते हैं
कोई जब दिल को छू जाए, हमें भी याद कर लेना

न होता दिल हमारा तो निशाना तुम किसे करते!
हमींने तीर चलवाए, हमें भी याद कर लेना

कभी आँखों-ही-आँखों बात कुछ हमसे भी होती थी
कभी हम भी तुम्हें भाये, हमें भी याद कर लेना

तुम्हारे प्यार की धुन में खिला तो सौ गुलाब आये
भले ही हम न खिल पाए, हमें भी याद कर लेना