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"जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं / आरज़ू लखनवी" के अवतरणों में अंतर
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चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥ | चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥ | ||
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उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली। | उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली। | ||
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥ | कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥ | ||
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00:18, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जो कोई हद हो मुअ़य्यन तो शौक़, शौक़ नहीं।
वो कमयाब है जो कमयाब हो न सका॥
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से।
चमन में आके भी काँटा गुलाब हो न सका॥
... .... ...
उदू न भी मगर अन्धी ज़रूर थी बिजली।
कि देखे फूल न पत्ते न आशियाँ देखा॥