भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो भी दुख याद न था याद आया / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अहमद फ़राज़ | |रचनाकार=अहमद फ़राज़ | ||
+ | |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
<poem> | <poem> | ||
− | जो भी दुख याद न था याद आया | + | जो भी दुख याद न था याद आया |
− | आज क्या जानिए क्या याद | + | आज क्या जानिए क्या याद आया |
− | + | फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे | |
− | फिर | + | फिर तेरा अहदे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी का प्रण</ref>याद आया |
− | + | जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल | |
− | + | एक-इक नक़्श<ref>मुखाकृति</ref>तिरा याद आया | |
− | + | ऐसी मजबूरी के आलम<ref>हालत,अवस्था</ref>में कोई | |
− | + | याद आया भी तो क्या याद आया | |
− | ये | + | ऐ रफ़ीक़ो<ref>मित्रो</ref>! सरे-मंज़िल जाकर |
− | जिसको भूले वो सदा याद | + | क्या कोई आबला-पा<ref>जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों</ref>याद आया |
+ | |||
+ | याद आया था बिछड़ना तेरा | ||
+ | फिर नहीं याद कि क्या याद आया | ||
+ | |||
+ | जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बना | ||
+ | जब कोई भूल गया याद आया | ||
+ | |||
+ | ये मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’ | ||
+ | जिसको भूले वो सदा याद आया | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
19:05, 15 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
जो भी दुख याद न था याद आया
आज क्या जानिए क्या याद आया
फिर कोई हाथ है दिल पर जैसे
फिर तेरा अहदे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी का प्रण</ref>याद आया
जिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूल
एक-इक नक़्श<ref>मुखाकृति</ref>तिरा याद आया
ऐसी मजबूरी के आलम<ref>हालत,अवस्था</ref>में कोई
याद आया भी तो क्या याद आया
ऐ रफ़ीक़ो<ref>मित्रो</ref>! सरे-मंज़िल जाकर
क्या कोई आबला-पा<ref>जिसके पाँवों में छाले पड़े हुए हों</ref>याद आया
याद आया था बिछड़ना तेरा
फिर नहीं याद कि क्या याद आया
जब कोई ज़ख़्म भरा दाग़ बना
जब कोई भूल गया याद आया
ये मुहब्बत भी है क्या रोग ‘फ़राज़’
जिसको भूले वो सदा याद आया
शब्दार्थ
<references/>