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"जो मिल -जुल के करते बदी की हिफ़ाजत / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ, | ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ, | ||
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13:03, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
जो मिल-जुल के करते बदी की हिफ़ाज़त।
वही देश पर कर रहे हैं हुकूमत।
दिखाता नहीं रूह कैसे सँवारूँ,
रही उम्र भर आइने से शिकायत।
जो भाषण भी पढ़ते लिखा दूसरों का,
वही लिख रहे हैं ग़रीबों की किस्मत।
गर अंकुश नहीं हाथियों पे रखोगे,
तो उजड़ेगी बगिया मरेगा महावत।
ग़ज़ल में तेरा हुस्न भर भी अगर दूँ,
मैं लाऊँ कहाँ से ख़ुदा की नफ़ासत।
जब इंसान मिलने लगे बर्फ़ के तो,
नहीं रह गई और चढ़ने की हिम्मत।