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जो मुझे होता है वह दर्द तुझ तक पहुँचे/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००४/२०११

जो मुझे होता है वह दर्द तुझ तक पहुँचे
यूँ इस ख़ला<ref>निर्वात, शून्य</ref> की खोयी गर्द तुझ तक पहुँचे

की है मेरे दिल ने सदा तुझसे मोहब्बत
सादा ही सही इक ये फ़र्द<ref>धार्मिक नियम</ref> तुझ तक पहुँचे

धूप सारे आलम में महक रही है हर-सू<ref>सभी ओर</ref>
कि मेरे सीने की ये सर्द तुझ तक पहुँचे

चमन-चमन में है आज मौसमे-गुले-बहार<ref>बसंत के फूलों की ऋतु</ref>
कभी ये भी हो मौसम-ए-ज़र्द<ref>पतझड़ की ऋतु</ref> तुझ तक पहुँचे

शब्दार्थ
<references/>