भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो रहा अनकहा / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>जो रहा अनकहा मैंने कहा गोया कि थम गई नदी समंदर बहा टुकुर-टुकुर द…)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
यह विलोम आसमान  
 
यह विलोम आसमान  
 
   
 
   
एक ही समंदर
+
 
सारे समंदर
+
मेरे अंदर
+
सारी नदियां भागती सी आती है
+
टकराती है
+
और सूख जाती है
+
समंदर की नहीं कोई एक नदी
+
फिर भी पाले है हर नदी
+
एक समंदर
+
एक ही समंदर
+
कविता
+
अथाह नीले में
+
चुपचाप
+
टप्प से गिरी एक नन्हीं सी कंकरी
+
बनाती
+
एक के बाद एक कई वृत्त
+
होती अथाह
+
चुपचाप
+
 
</poem>
 
</poem>

17:25, 4 जुलाई 2010 का अवतरण

जो रहा अनकहा
मैंने कहा
गोया कि
थम गई नदी
समंदर बहा
टुकुर-टुकुर देखता भर रहा बस
यह विलोम आसमान