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"जो रही और कोई दम... / आसी ग़ाज़ीपुरी" के अवतरणों में अंतर

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आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥
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क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥
 
क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥
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18:29, 20 जुलाई 2009 का अवतरण

जो रही और कोई दम यही हालत दिल की।

आज है पहलु-ए-ग़मनाक से रुख़स्त दिल की॥


घर छुटा, शहर छुटा, कूचये-दिलदार छुटा।

कोहो-सहरा में लिये फ़िरती है वहशत दिल की॥


रास्ता छोड़ दिया उसने इधर का ‘आसी’।

क्यों बनी रहगुज़रे-यार में तुरबत दिलकी॥