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जो हैं मिट गए तेरी आन पर वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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जो हैं मिट गए तेरी आन पर वो सदा मिलेंगे यहीं कहीं।
तेरी धूल में वो ही फूल बन के खिला करेंगे यहीं कहीं।
ऐ वतन मेरे कभी काल भी नहीं कर सकेगा जुदा हमें,
मैं मरा तो क्या मैं जला तो क्या मेरे अणु रहेंगे यहीं कहीं।
तू ही घोसला तू ही है शजर तू चमन मेरा तू ही आसमाँ,
तुझे छोड़ के जो कभी उड़ा मेरे पर गिरेंगे यहीं कहीं।
मुझे मेघ नभ का बना दिया कभी धूप ने तो वचन है ये,
मेरे अंश लौट के आएँगें जो बरस पड़ेंगे यहीं कहीं।
कोई दोज़खों में जला करे कोई जन्नतों में घुटा करे,
जिन्हें प्यार है मेरे देश से वो सदा उगेंगे यहीं कहीं।