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ज्ञान का दीप जलायाँ / हरेराम बाजपेयी 'आश'
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ज्ञान का दीप जलाएँ,
आओ किसी को पढ़ाएँ।
विधा से मिटता है अंधेरा,
फिर होता है नया सबेरा,
एक नए आकाश को पाने,
आओ, सूरज नया उगाएँ। आओ किसी...
जाति-धर्म के भेद मिटाती विधा है,
नर-नारी के भेद मिटाती विधा है,
सभी समान है माँ-मन्दिर में,
आओ भटके हुओं को बताएँ। आओ किसी...
अनपढ़ होना कलंक है कलंक यह बतलाना है,
चाहे जीतने कंटक आएँ, इसको हमें मिटाना है,
मेरे रहते नहीं रहेगा, कोई निरक्षर,
आओ आज शपथ हम खाएँ। आओ किसी...
आओ किसी को पढ़ाएँ,
ज्ञान का दीप जलाएँ॥