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झरै है सुर... : एक / राजेश कुमार व्यास

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(पं. षिवकुमार शर्मा रै संतुर नै सुणती थकै)

बैवै झरणौ
कळ-कळ
री आवाज साफ
सुणीजै
थौड़ी’क ताळ थमै
अर
फेरूं बैवै
कळ-कळ-कळ...
बुलबुला बणावै पाणी रा
हंसे, खिलखिलावै
गावै कोई गीत
घाटी रै सुनपण मांय
हरै
अेकलोपण।
झरणै रै झरण सूं
भिगिज जावै मन
झरै पाणी रै सागै
घणकरा सोवणा अर
मन मोवणा सुर
सा रे ग म प ध नि सा
सा नि ध प म ग रे सा...।