भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टैटू / प्रवीण काश्‍यप

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 4 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रवीण काश्‍यप |संग्रह=विषदंती व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नब शंकाक बोझक तऽर में
किछु सृष्टि होइत अछि;
मनक अश्व दौड़-दौड़ कातऽ जाइछ?
एहि दिस कि ओहि दिस?
ठहरावक कोनो सीमा रेखा!
कल्पनाक रचाना सँ बनाबैत मन
अपन चिन्ह, अपनहि कोमल देह पर!

स्वयं कें दग्ध करैत हम
ने हर्ष ने विषादक भाव!
स्ंतुष्टियो तऽ नहि भेटैत अछि
अपन देह कें जराकऽ!
मुदा, जरैत चर्मक गंध नीक
कोनो बातक टीस सँ!

नव शंकाक बोझ तऽर में
किछु सृष्टि होइत अछि,
हमर देह पर!
हम किछु रचना अंकित कयलहुँ अछि
अपन देह पर!
जे रहत हमरा संग ताबत धरि
जाबत एहि जीवित रचना कें
हमरहि कोनो रचना
जरा नहि दैत अछि!
मुदा की?केओ फूँकि सकैत अछि
हमर शंका कें ?
हम तऽ असमर्थ भऽ गेल छी;
कियेक नहि अहीं लगबैत छी
हमर अश्व पर लगाम!