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"ठहर, कल झील निकलेगी इसी से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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बचाये रब ही ऐसे पारखी से। | बचाये रब ही ऐसे पारखी से। | ||
− | समय भी भर नहीं पाता है | + | समय भी भर नहीं पाता है इसको, |
− | + | सँभल कर घाव देना लेखनी से। | |
− | + | हक़ीक़त का मुरब्बा बन चुका है, | |
− | + | लगा बातों में लिपटी चाशनी से। | |
उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’, | उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’, | ||
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से। | कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से। | ||
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12:22, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
ठहर, कल झील निकलेगी इसी से।
निकलने दे अगन ज्वालामुखी से।
सफाई कर मदद ले के किसी से,
कहाँ भागेगा ख़ुद की गंदगी से।
मिली है आज सारा दिन मुहब्बत,
सुबह तेरे लबों की बोहनी से।
बताये कोयले को भी जो हीरा,
बचाये रब ही ऐसे पारखी से।
समय भी भर नहीं पाता है इसको,
सँभल कर घाव देना लेखनी से।
हक़ीक़त का मुरब्बा बन चुका है,
लगा बातों में लिपटी चाशनी से।
उफनते दूध की तारीफ ‘सज्जन’,
कभी मत कीजिए बासी कढ़ी से।