भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKLokRachna|रचनाकार=अज्ञात}}{{KKLokGeetBhaashaSoochi|भाषा=खड़ी बोली}}
'''पनघट का गीत<br>'''
ठायकै बंटा टोकणी ,कुएँ पै आई हो ।<br>
कुएँ पै कोई ना,एक परदेसी छोहरा …<br>
-पाणी वाळी पाणी पिला दे ,तुझै देखकै आया हो<br>
हो इन बागों के मैं नींबू और केळे –सी मिलाई…<br>
ठायकै बंटा टोकणी ,कुएँ पै आई हो।<br>-पाणी तो मैं जभी पिलाऊँ, माँज टोकणी ल्यावै<br>
हो मेरी सुणता जइए बात बता दूँगी सारी हो…<br>
बाबुल तो मेरा छाँव मैं बैट्ठा<br>
अम्मा दे रही गाळी हो<br>
हो मेरी भावज लड़ै लड़ाई ,इतनी देर कहाँ लाई ।<br>ठायकै बंटा टोकणी ,कुएँ पै आई हो<br>-ना तेरा बाबुला छाँव मैं,ना तेरी अम्मा दे गाळी हो
हो ना तेरी भावज लड़ै<br>
हो मेरी गूँठी ले जा<br>
चल तेरी यही है निशानी, <br>
ठायकै बंटा टोकणी ,कुएँ पै आई हो ।हो।<br> >>>>>>>>>>>>>>>>>