भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ठूंठ / गीता शर्मा बित्थारिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 7 सितम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीता शर्मा बित्थारिया |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम
नीले विहान में
सिंदूरी वितान सजा रहा है
प्रदर्शन
धरातल पर
प्रतिबंध का डामर बिछा रहा है

प्रेम
बिन कहे
पैरों को सुर्खाव के पंख लगा रहा है
प्रदर्शन
बिन सुने
छोटी छोटी उड़ानों को भी कुतर रहा है

प्रेम का
नेहसिक्त स्पर्श
हर दर्द सोख रहा है निशब्द
प्रदर्शन का
झूठा आलिंगन
तो निपट खोखली दिलासा लग रहा है

प्रेम
शीतल छांव की अक्षत आश्वस्ती
प्रदर्शन
पात विहीन वृक्ष
बन कर रह जाता है एक ठूंठ
प्रेम विहीन प्रेम
बन कर रह जाता है सिर्फ देह
और ये जानती है हर स्त्री