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"ठोकर खा गिर पडी मनुजते! कौन अश्रुकण पोंछे आज / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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ठोकर खा गिर पडी मनुजते! कौन अश्रुकण पोंछे आज
 
तेरे रक्तसने  कपोल से, कौन करे चन्दन-लेपन
 
जलते हुए हृदय पर तेरे! आती दानवता को लाज,
 
काँप रहा इतिहास देख ऐसा निष्ठुर प्रत्यावर्तन
 
 
 
बुद्ध गये, ईसा फिर, गाँधी से था यह विश्वास हमें
 
टूट जायँगे हिंसा-बंधन निश्चय ही तेरे इस बार.
 
हुआ न वह भी, त्राण कहाँ फिर तेरा! देख हताश हमें
 
सिसक रहा है शिशु-सा मुँह पर हाथ दिये सारा संसार
 
 
 
कौन आह, कहता है! 'रोओ नहीं', व्योम में, धरती में,
 
कोटि-कोटि प्रतिध्वनियाँ बनकर गूँज रहे हैं जिसके शब्द
 
जन-जन-मन में 'आऊँगा पीड़ित वसुधा पर फिर भी मैं,'
 
जैसे गीता वाक्य न भूला बीते यद्यपि शत-शत अब्द
 
 
 
'जब-जब धर्म-मार्ग रुँध जाता, बढ़ते दुर्दम अत्याचार 
 
तब-तब साधु-जनों के रक्षण-हित मैं लेता हूँ अवतार.'  
 
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02:57, 17 जुलाई 2011 के समय का अवतरण