भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डरपोक / बालस्वरूप राही

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 23 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोहे जैसी पीठ मगर
कछुआ फिर भी नहीं निडर।
गर्दन बाहर करता है,
लेकिन जब भी डरता है,
अपने में खो जाता है,
छोटा-सा हो जाता है।

डरते रहते हैं डरपोक,
वीर बढ़ा करते बेरोक।