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डूबते को चाहिये बस / अनीता सिंह

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डूबते को चाहिए बस
एक तिनके का सहारा
ताकि मिल जाये किनारा।

जीत की दुर्गम डगर में
छोड़ता खुद को लहर में
चाहता है बच निकलना
डूबता जब वह भँवर में
आ हीं जाता है निकलकर
लक्ष्य ने जिसको पुकारा।

लिपटते शैवाल पग में
लक्ष्य का संधान मग में
आस की बिजली चमककर
दौड़-सी जाती है रग में
है दमकता रूप उसका
दर्द ने जिसको निखारा।

धार के विपरीत चलकर
दर्द चुटकी से मसलकर
पहुँचता है लक्ष्य पर जब
खुद से हीं गिरकर संभलकर
जो समय को साथ कर ले
वक़्त ने उसको सँवारा।