भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढिगळी होवण तांई / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोत तळै जाय’र
नीसरयो है कूओ
रास रा निसाण
आपरै मुंडै री
समूळी गेळाई में
कोरियां ऐनाण
पण नीं बतावै
किण दिस
कुण जात
भरती ही पाणी !
काळीबंगा रो मून
बतावै
एक जात
आदमजात
जकी
भेळी जागी
भेळी ई सोई
भेळप निभाई
ढिगळी होवण तांई ।