भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तनिमा / तुषार धवल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 14 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(मारी गई और जीते-जी मरती हुई बेटियों के नाम )

तुम्हारी नन्हीं हथेलियों में
मैं कब अपना सारा संसार रख देता हूँ
मुझे पता भी नहीं चलता

तुम्हें गोद में उठाते हुए मेरा सर्वस्व तुम्हारी गोद में होता है बिटिया !
सब कुछ अपना तुम में धर कर तुम्हीं में उड़ता हूँ मुक्त फिर जन्म लेता हूँ तुम्हारी हर पुकार पर

तुम यहाँ नहीं हो
अभी इस संसार में देह लिए लेकिन
मौजूद हो तुम अपनी माँ और मेरे योग के संयोग के उस क्षण में
जिसका अवतरण नहीं हुआ है
लेकिन तुम्हारी कमी जैसा कुछ नहीं लगता मुझे
तुम्हारी किलकारी ! ओह्होय !! देखो-देखो किस तरह पैरों के अँगूठों पर चल रही है !
ताय-ताय, ताय-ताय ! एक पाजेब चाँदी की नन्हीं-सी क़दमतालियों में रख दो
झुन झुन झन झुन
अरे अर्रर्रे ! देखो गिरेगी ! देखो देखो उसको
ओह्हो ! शू शू ! इसकी डायपर बदल दो, कुछ खिला दो दूध पिला दो सो जाएगी

ऊँहूँह ! श्शश ! धीरे से ! जग जाएगी तो रोएगी. उसे मत रुलाओ कोई ! आओ ओ बिटिया मेरी पाखी मेरे कन्धों पर सर रख दो देखो सपने सुन्दर सुनहरे. तुम्हारी नन्हीं हथेलियों पर लकीरें हैं तुम्हारे समय की जाने क्या क्या आएगा तुम्हारे हाथ क्या छूट जाएगा ... बलाएँ छूटें तुम्हारी सुख आए हाथ ! सो जा... ऊँssमुच्च्च ! आ री सोनचिरैया...

सूरज चंदा और सितारे
तेरे आँगन खेलें सारे
तेरे संसारों में हरदम
जीयें सुख सम सखा तुम्हारे

देखो सो रही है ! चुप श्शश...
उसकी गुलाबी फ्रॉक पर दूध के दाग ! दो दाँतों ने झाँकना शुरू किया है जस्ट अभी
गुलाब के बदन पर दो तारों की झिलमिल अँगड़ाई
पकी माटी के दीये में चम्पा की दो पंखुड़ी !
बचा रह जाए यह सब वाष्प बनकर उड़ रहे समय के बाद भी रह सको सुरक्षित तुम हमेशा पर
जानता हूँ बिटिया ! तुम सुरक्षित नहीं हो कहीं भी --- गर्भ से चिता तक
लेकिन फिर भी आओ इस क्रूर समय संसार में
इसी क्रूर समय संसार में फिर फिर आओ उन्हीं हाथों में जो तुम्हें घोंट देते हैं ! आती रहो आती रहो हर बार जब तक कि हिंसा प्रेम ना सीख जाए उन खूनी सख़्त हाथों में एक कोमल कम्पन भर दो बिटिया ! आओ कि बहुत बीमार है धरती और तुम्हारी राह तकती है हर हत्या में हर गर्भपात हर अपहरण में
वही चीख़
फाड़ती है उसका आकाश और उसका कलेजा
उसके सूखे बाल भूरे बादलों के जंग खाए पंखों से कबाड़ की ढेर की तरह बिखरे हैं
उजड़े हुए हैं ख़ुशी के रास्ते मातम है पृथ्वी पर जिसे कोई नहीं समझता लेकिन मैं कहता हूँ आओ बिटिया !

मेरी गोद में भी आओ मेरी तनिमा !
यही है तुम्हारा नाम
मेरी बेटी !
अणिमा की दुलारी फुलकारी हमारी कल्पना की
तनिमा, कृशांगी सुन्दर, कवियित्री !
तनिमा, युग्म हमारे नामों का
तनिमा, यानि तुम
तनिमा, यानि हम
तनिमा है और यह सब जानते हैं
सिर्फ़ मैं ही नहीं जानता कहाँ हो तुम इस वक़्त
हमारी साँस हमारी धड़कन कब वह क्षण उगाएगी जिसमें तुम हो अभी अवस्थित

आओ और हर घर में हो जाओ हर घर की अपनी तनिमा हर घर की बेटी होना मौत को मुँह चिढ़ाने-सा होता है ख़तरनाक ज़िम्मेदारियों के झोंटों में उलझी पतंग-सा ख़तरनाक होता है बेटी बन कर आना

ख़तरनाक होता है जन्म यहाँ फिर भी आओ तनिमा आओ हर बार ऐसी ही बार बार आओ
आओ फ़तवों की लपलपाती जीभ पर चल कर

फिलिस्तीन साइप्रस के खून में जन्मो तालिबानी बन्दूकों में अपनी टिहुँक भर दो बारूदों में विस्फोटों में हर जगह उतरो चलो इन्हीं नरमुण्डों पर इन उलटते पहाड़ों पर फटते बादलों पर उतरो प्रलय के हाहाकार में मृत्यु की घोर पातकी करतूतों में उतरो बाज़ारों के लोभी छल में उस मोहजाल में उतरो मेरी बेटी वहाँ प्यार भर दो शान्ति भर दो यहाँ वहाँ हर जगह यहीं वहीं होना है तुम्हें इस वक़्त और यह तुम्हीं कर सकती हो क्योंकि तुम स्त्री हो और मेरे कलेजे से निकली हुई एक कोमल कल्पना हो एक विकल्प हो इन लाचार जिजीविषाओं का

आओ फिर फिर आओ मृत होने को कूड़े के ढेरों में फेंके जाने को चिताओं या रसोइयों में झोंके जाने को ठगी जाने को लेकिन आओ और यहीं आओ कि अभी यही है हमारे पास हम कितना भी चाहें, ख़ुश हो लें, लेकिन हाथ खोलेंगे तो यही निकलेगा और इसे ही स्वीकारो इसे ही बदलो और इसीलिए आओ ! आओ ऋचाओं के पुनर्पाठ में मार्क्स और मनु के अन्तर्सम्वाद में स्त्रीवादी विमर्शों के ढकोसले प्रलापों में आओ एक सम्पूर्ण खुरदुरी स्त्री तनिमा !

तुम्हारे जन्म में जन्म लेगी एक माँ जन्मेगा एक पिता जन्म लेगा एक संसार
कितना कुछ जनोगी बिटिया तुम जन्मते ही !
तुम जीवन का उत्सव हो सृजन का संसृति का इसीलिए आओ
डाली पर बैठे कालिदासों के घर आओ
आओ और हिंसक नरों के इस बौराए झुण्ड को प्यार से सहला दो
स्पर्श करके जगा दो उन्हें अपनी माटी में पूरा का पूरा
आओ कि इसी वक़्त विश्व को सबसे ज़्यादा ज़रूरत है एक माँ की
तुम बेटी हो और तभी तुम पर यह भरोसा करता हूँ बिटिया ! आओ !

तुम अभी नहीं हो और
हर बेटी में
तुम्हारा इन्तज़ार है।