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तब दुनिया मे प्रेम परस्पर हॉता है / अंशुल आराध्यम

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भाषाएँ चुप रहें, भावनाएँ बोलें
ऐसा होना कितना सुन्दर होता है

भावुकता से भरी नेह की पूजा में
शब्द-शब्द का अर्थ लगाना ठीक नहीं
जहाँ समर्पित होना चाह रहा हो मन
वहाँ कोई भी शर्त लगाना ठीक नहीं

शंकाएँ चुप रहें, आस्थाएँ बोलें
ऐसा ही होने में ईश्वर होता है

प्यास बुझाना बहुत सरल है दुनिया में
मगर तृप्ति का स्वाद अलग ही होता है
जिसके भीतर तृप्ति जन्म ले उठती है
फिर उसका अनुवाद अलग ही होता है

कायाएँ चुप रहें आत्माएँ बोलें
तब दुनिया मे प्रेम परस्पर हॉता है

स्वार्थ सिद्ध करने वालों की दुनिया में
शुद्ध हृदय पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है
लोलुपता वरदान मांगती है जब भी
पुण्य उदय पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है

माताएँ चुप रहें, मंथराएँ बोलें
तब दशरथ-सा जीवन दुष्कर होता है