भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाशा / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:02, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यहाँ जितना मज़ा
तमाशा करने वालों को
आता है
उतना ही देखने वालों को भी
नतीज़ा:
गीदड़ राजा हो जाता है
और भेडिये
बस्तियों में आजाद घूमते हैं

बातें करना
लोगों का शगल है
वरना पड़ोस में हादसा होते देखकर
अपने दरवाजे और खिड़कियाँ नहीं बन्द करते
फिर वारदात हो जाने के बाद
हुआँने का मतलब क्या
नारे लगाओं
जुलूस निकालो
कैंडिल मार्च करो
या मशालें जलाओ