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तम्हीद-ए-सितम और है तकमील-ए-जफ़ा और / शकील बँदायूनी

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तम्हीद-ए-सितम और है तकमील-ए-जफ़ा और
चखने का मज़ा और है पीने का मज़ा और

तासीर तो तासीर तसव्वुर है गुरेज़ाँ
रातों को ज़रा माँगिये उठ उठ के दुआ और

दोनों ही बिना-ए-कशिश-ओ-जज़्ब हैं लेकिन
नग़्मों की सदा और है नालों की सदा और

टकरा के वहीं टूट गये शीशा-ओ-साग़र
मैख़्वारों के झुर्मुट में जो साक़ी ने कहा और

वो ख़ुद नज़र आते हैं जफ़ाओं पे पशेमाँ
क्या चाहिये और तुम को "शकील" इस के सिवा और