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तरान-ए-उर्दू / अली सरदार जाफ़री

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हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू यह वह ज़बाँ है कि जिसको गंगा के जल से पाकीज़गी मिली है अवध की ठण्डी हवा के झोंकों में जिसके दिल की कली खिली है जो शे’रो-नग़मा के खुल्दज़ारों मे आज कोयल-सी कूकती है हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू इसी ज़बाँ में हमारे बचपन ने माँओं से लोरियाँ सुनी हैं जवान होकर इसी ज़बाँ में कहानियाँ इश्क़ ने कही हैं इसी ज़बाँ के चमकते हीरों से इल्म की झोलियाँ भरी हैं हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू यह वह ज़बाँ है कि जिसने ज़िन्दाँ की तीरगी में दिये जलाये यह वह ज़बाँ है कि जिसके शो’लों से जल गये फाँसियों के साये फ़राज़े-दारो-रसन१ से भी हमने सरफ़रोशी के गीत गाये हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू चले हैं गंगो-जमन की वादी से हम हवाए-बहार बनकर हिमालया से उतर रहे हैं तरान-ए-आबशार२ बनकर रवाँ हैं हिन्दोस्ताँ की रग-रग में ख़ून की सुर्ख़ घार बनकर हमारी प्यारी ज़बान उर्दू हमारे नग़्मों की जान उर्दू हसीन दिलकश जवान उर्दू


१.सूली की रस्सी की ऊँचाई २.झरना