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तलवे जो चाटते वो वफ़ादार हम नहीं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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तलवे जो चाटते वो वफ़ादार हम नहीं।
आशिक हैं किंतु इश्क में बीमार हम नहीं।

लिपटे हुए हैं राख में पर यूँ न छेड़िए,
मुट्ठी में ले लें आप वो अंगार हम नहीं।

रोटी दिखा वतन की बुराई न कीजिए,
भूखे तो हैं जरूर पर गद्दार हम नहीं।

पत्थर भी खाएँ आप के, फल आप ही को दें,
रब की दया से ऐसे भी लाचार हम नहीं।

दिल के वरक़ पे नाम लिखा है बस एक बार,
आते जो छप के रोज़, हैं अख़बार, हम नहीं।

घाटा, नफ़ा, उधार, नकद, मूल, सूद सब,
सीखे पढ़े हैं खूब पर बाजार हम नहीं।