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तस्कीं को हम न रोयें जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले / ग़ालिब
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हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:56, 22 मई 2009 का अवतरण
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
हूराँ-ए-ख़ुल्द में तेरी सूरत मगर मिले
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यों तेरा घर मिले
साक़ी गरी की शर्म करो आज वर्ना हम
हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मिले
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
मेरा सलाम कहियो अगर नामाबर मिले
तुम को भी हम दिखायें के मजनूँ ने क्या किया
फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले
लाज़िम नहीं के ख़िज्र की हम पैरवी करें
माना के एक बुज़ुर्ग हमें हम सफ़र मिले
ऐ साकनान-ए-कुचा-ए-दिलदार देखना
तुम को कहीं जो ग़ालिब-ए-आशुफ़्ता सर मिले