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ताँका 11-20 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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11
शक की कीलें
बहुत ही गहरी
क्या कर लोगे?
मरा हुआ विश्वास
कहाँ से लाके दोगे?
12
अपनी मौत
कुछ मरते नहीं
डरते नहीं,
मिथ्या आरोप धरे
वे अपनों से मरे
13
नाले का पानी
पीकरके जनता
नारे लगाती
हम हुए आज़ाद
यह जश्न मनाती
14
मेरी बहना
कहने को है छोटी
बड़ा गहना
हीरे मोती मन में
शब्दों के कानन में।
15
मेरी बहना
तू गगन का चन्दा
अँधेरा हरे
मन उजाला भरे
हम साथ तुम्हारे
16
जिसे था सोचा-
छोटी-सी किरन है,
वो थी चाँदनी
बराबर न मेरे
थी बड़ी हाथ भर।
17
माथा था चाँद
नयन भरे ताल
सुधा -मुस्कान
मन और सुन्दर
मलयानिल जैसा
18
नेह अतल
शिशु जैसी सरल
वाणी निश्छल
संझा वाती अमल
नीर-सी छल-छल
19
उठे हैं हाथ
मेरी दुआएँ साथ
ऊँचा हो माथ
पथ बने सरल
खिले मन -कमल
20
छूलो शिखर
चलो आठों पहर
होके निडर
बाट जोहते रहें
उजालों के नगर