भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीरगी ठहरेगी कब तक रौशनी के सामने / नफ़ीस परवेज़
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:50, 27 फ़रवरी 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नफ़ीस परवेज़ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तीरगी ठहरेगी कब तक रौशनी के सामने
सुब्ह आयेगी नयी फिर जिंदगी के सामने
मुख़्तसर-सी ख़्वाहिशों ने ये कभी सोचा न था
ग़म बड़े हो जायेंगे छोटी ख़ुशी के सामने
बेवफ़ाई को भी नादानी समझना इश्क़ था
दिल ने उनको चाहा उनकी हर कमी के सामने
मुद्दातों के बाद वह कुछ इस तरह हमसे मिले
रू-ब-रू जैसे हो कोई अजनबी के सामने
भूल कर शिकवे गिले मिल जायें वह शायद गले
हाथ अपने हम बड़ा लें बेरुख़ी के सामने