भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुझको याद करूँ मैं / कमलेश द्विवेदी

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 24 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझको कितनी चाह तुम्हारी.
हर पल देखूँ राह तुम्हारी.

मन करता है गीत सुनाऊँ,
और सुनूँ मैं वाह तुम्हारी.

आहत दिल को कितनी राहत,
देती एक निगाह तुम्हारी.

भूल न पाऊँ याद कभी भी,
आह तुम्हारी आह तुम्हारी.

सागर गहरा या तुम गहरे,
कैसे पाऊँ थाह तुम्हारी.

आओ-देखो-जानो मुझको,
कितनी है परवाह तुम्हारी.