भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुमको पाया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
+
{{KKRachna}}
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’   
+
|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’   
 
}}
 
}}
[[Category: चोका ]]
+
[[Category: चोका]]
 
<poem>
 
<poem>
  

22:16, 10 फ़रवरी 2018 का अवतरण

|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }}


खाक़ थी छानी
वीरानों की हमने
कभी भटके
मोड़ पर अटके
कोई न भाया,
भरी भीड़ में तब
तुमको पाया ।
तुम कहाँ छुपे थे ?
यूँ बरसों से ,
खुशबू बनकर,
दूध-चाँदनी,
कभी भोर का तारा,
नभ-गंगा से
कभी रूप दिखाया ।
किया इशारा
तुम ही थे अपने
अन्तर्मन से
सुख-दु:ख के साथी
प्राणों की ऊष्मा
बनकर के आए
भर गले लगाया ।
-0-