भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप; / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गाँधी-भारती / गुलाब खंडे…)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=गाँधी-भारती / गुलाब खंडेलवाल
 
|संग्रह=गाँधी-भारती / गुलाब खंडेलवाल
 
}}
 
}}
[[category: कविता]]
+
{{KKAnthologyDeath}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
 
तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप;
 
तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप;
 
यह विडम्बना, हाय! न जाने किन जन्मों के पाप उगे
 
यह विडम्बना, हाय! न जाने किन जन्मों के पाप उगे

01:44, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण

तुमने जीवन दिया हमें, हम तुम्हें मृत्यु दे बैठे आप;
यह विडम्बना, हाय! न जाने किन जन्मों के पाप उगे
एक साथ ही आज हमारे, दग्ध हृदय ले यह अनुताप
शांत हो सकेगा, युग-युग तक चाहे लोचन अश्रु चुगे!
 
आह! दयामय पिता, क्षमामय तुम, पर स्वर्गों का शासक
हमें करेगा क्षमा जाति का देख कलंकपूर्ण यह कृत्य!
अपने कर का खड्ग बने यदि अपने प्राणों का घातक
यदि ऐसे ही उठकर कर दे छिन्न शीश स्वामी का भृत्य,
 
मानवता का त्राण कहाँ फिर! पुत्र जनेगी जननी कौन
झेल प्रसव की पीड़ा दुस्सह! कौन करेगा व्रत-पालन
सुत के हित! पर नहीं देखता हूँ मैं रक्तसना भी मौन
रहा पुकार तुम्हें हे ईश्वर! क्षमा करो इनका बचपन
 
ज्ञात नहीं है इन्हें कि ये क्या पाप कर रहे हैं अनजान
इन्हें बुद्धि दो, सत्य दिखा दो, सम्मति दो इनको भगवान!