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तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम / सुमित्रानंदन पंत

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तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम,
भरा जामे जमशेद!
घिरा मदिरा का फेन ललाम,
बदन पर रति सुख स्वेद!

निछावर करना तुम पर प्राण
तोड़ जीवन के बंध,
प्रतीक्षा में रहना प्रतियाम--
यही स्वर्गिक आनंद!

तुम्हारे चरणों पर हो माथ,
मात्र उर की अभिलाष!
तुम्हारे पद रज कण में, नाथ,
भरा शत सूर्य प्रकाश!